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कठोर ब्रह्मचर्य, तपस्या और दुनिया से अलग जीवन का अनुसरण करती हैं महिला नागा साधु

Mahila Naga Sadhu: नागा साध्वियां; आध्यात्मिकता और तपस्या की अनूठी यात्रा

Mahila Naga Sadhu: नागा साधु साधु-संतों का एक अद्वितीय और प्राचीन समुदाय है, जिसमें पुरुषों के साथ-साथ महिला नागा साध्वियां भी शामिल होती हैं। यह साध्वियां कड़ी तपस्या, ब्रह्मचर्य, और अपने जीवन के सभी सांसारिक बंधनों को त्यागकर एक आध्यात्मिक मार्ग का अनुसरण करती हैं। हालांकि, पुरुष नागा साधुओं के विपरीत, महिला नागा साध्वियों की जीवनशैली और परंपराओं में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं।

महिला नागा साध्वियों का विशेष जीवन

महिला नागा साध्वियां नग्न नहीं होतीं, जैसा कि पुरुष नागा साधुओं के साथ होता है। उन्हें बिना सिले कपड़े का एक टुकड़ा पहनने की अनुमति होती है, जिससे उनकी साध्वी जीवनशैली का प्रतीकात्मक संकेत मिलता है। साध्वियां अपने माथे पर तिलक लगाती हैं और अपने बालों को लटका हुआ छोड़ देती हैं, जो उनके तपस्वी जीवन का हिस्सा है।

कठोर तपस्या और ब्रह्मचर्य का पालन

महिला नागा साधु बनने से पहले इन साध्वियों को कठोर तपस्या और ध्यान के मार्ग से गुजरना पड़ता है। इस मार्ग का पालन करते हुए, उन्हें 6 से 12 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। इस कठोर ब्रह्मचर्य और तपस्या के बाद ही उन्हें नागा साधु बनने का अवसर मिलता है। दीक्षा के समय, इन साध्वियों को अपना सिर मुंडवाना पड़ता है, जो उनके पुराने जीवन के प्रतीकों से पूर्णतः अलगाव का प्रतीक है।

पिंड दान और सांसारिक बंधनों का त्याग

महिला नागा साधु बनने से पहले, महिला भिक्षुणी को सभी सांसारिक बंधनों को त्यागना होता है। यह त्याग इतना गहरा और संपूर्ण होता है कि उसे जीवित रहते हुए ही अपना पिंड दान करना होता है। हिन्दू धर्म में पिंड दान केवल मृत्यु के बाद किया जाता है, लेकिन नागा साध्वियां इसे जीवित रहते हुए करती हैं, जिससे वे अपने पिछले जीवन से पूरी तरह मुक्त हो जाती हैं।

दुनिया से अलग, परंतु आध्यात्मिक

महिला नागा साधु हमेशा दुनिया से अलग-थलग जीवन व्यतीत करती हैं, केवल कुंभ मेले जैसे अवसरों पर पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए वे दुनिया के सामने आती हैं। इस अवसर पर, वे अपने तपस्वी जीवन का सार्वजनिक प्रदर्शन करती हैं, जो उनके त्याग और साधना की गहरी परंपरा का हिस्सा है।

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