नीम करोली बाबा की महासमाधि; 11 सितंबर को विश्वभर में मनाया जाता है शोक, कौन थे जिन्हें हनुमान जी का अवतार कहा गया
Baba Neem Karoli Mahasamadhi: नीम करोली बाबा की महासमाधि 11 सितंबर 1973 को हुई थी। जानें उनकी जीवन यात्रा, कैंची धाम की स्थापना और महासमाधि की दिव्य घटना के बारे में विस्तार से।
Baba Neem Karoli Mahasamadhi: 11 सितंबर 1973 को नीम करोली बाबा ने अनंत चतुर्दशी के दिन महासमाधि ली, जिससे दुनिया भर में उनके भक्तों के बीच शोक की लहर दौड़ गई। उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित कैंची धाम मंदिर, जो नीम करोली बाबा से जुड़ा हुआ है, आज भी देश और विदेश के लाखों भक्तों को आकर्षित करता है।
नीम करोली बाबा का जीवन परिचय
उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में 1900 के आसपास नीम करोली बाबा का जन्म हुआ. बाबा के पिता का नाम दुर्गा प्रसाद था. लक्ष्मीनारायण शर्मा नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम था. जब तक बाबा इस दुनिया में रहे नीम करोली बाबा, लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा व तिकोनिया वाले बाबा के साथ ही तलईया बाबा के नाम से जाना गया. किरहीनं गांव से बाबा की प्रारंभिक शिक्षा पूरी हुई और महज 17 साल की आयु में ही बाबा ने ज्ञान की प्राप्ति कर ली. 11 वर्ष की आयु में नीम करोली बाबा का विवाह करा दिया गया लेकिन बाबा ने बावजूद इसके घर का त्यागकर गुजरात में एक वैष्णव मठ में चले गए. वहीं पर बाबा ने दीक्षा लेकर साधना की और फिर कई जगहों पर भ्रमण के लिए निकल गए. हालांकि, एक समय ऐसा भी हुआ जब बाबा को गृहस्थी में लोटना पड़ा.
इसके बाद नीम करोली बाबा को दो पुत्र हुए और एक पुत्री पर साल 1958 में बाबा ने फिर से गृह त्याग किया और भ्रमण के लिए निकल पड़े. इस बार भ्रमण के दौरान कैंची धाम पहुंचें और साल 1964 में आश्रम की स्थापना कर डाली. बाबा यहां पर हनुमान मंदिर भी स्थापित करवाया. 1961 में पहली बार बाबा ने अपने मित्र पूर्णानंद के साथ यहां पहुंचे थे और भी उनके मन में आश्राम निर्माण का विचार आया था. नीम करोली बाबा के आश्रम सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में स्थापित किए गए.
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हनुमान जी के उपासक थे बाबा नीम करोली
बाबा नीम करोली को मानने वाले उनके भक्त व अनुयायी उन्हें साक्षात हनुमान जी के अवतार मानते रहे हैं. रोचक बात ये है कि नीम करोली बाबा खुद भी भगवान हनुमान के अन्नय भक्त थे और उनकी पूजा किया करते थे. हनुमान जी के कई मंदिर का निर्माण बाबा ने करवाए. बाबा के भक्त जब उनके पैर छूना चाहते थे तो वो मना कर देते थे. कहते कि पैर छूना है तो हनुमान जी के छुओ. नीम करोली बाबा भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं. आज भी भक्त श्रद्धापूर्वक उन्हें अपने हृदय में रखते हैं. बाबा अपने अलौकिक रूप में भक्तों के बीच ही होते है.
कैंची धाम की स्थापना और प्रभाव
नीम करोली बाबा ने 1964 में कैंची धाम की स्थापना की थी। यह स्थान आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहां की पूजा को हमेशा प्रभावशाली माना गया है और यहां की गई प्रार्थनाएं कभी व्यर्थ नहीं जातीं।
महासमाधि: 11 सितंबर 1973 की रात
11 सितंबर 1973 को नीम करोली बाबा ने अपने भौतिक शरीर को त्याग दिया। इस दिन, जब उनकी तबीयत अचानक बिगड़ी, तो उन्हें रामकृष्ण मिशन अस्पताल ले जाया गया। बाबा ने ऑक्सीजन मास्क को खींचकर फेंक दिया और कहा कि यह सब बेकार है। इसके बाद, उन्होंने भक्तों से तुलसी और गंगाजल मंगवाकर ग्रहण किया और रात करीब 01:15 पर समाधि ली।
महासमाधि के प्रमुख बिंदु:
- अंतिम संकेत: बाबा ने धाम के मंदिरों में जाकर प्रणाम किया और अपने कंबल को मां दुर्गा और हनुमान जी के मंदिरों के सामने फेंक दिया, जो उनके शरीर त्यागने के संकेत थे।
- अंतिम संस्कार: शरीर का अग्नि संस्कार करते समय एक तेज तूफान और बारिश ने दस्तक दी, लेकिन श्री सिद्धि मां के कदम रखते ही तूफान शांत हो गया।
दिव्य दर्शन और अंतिम यात्रा
अंतिम संस्कार के दौरान, बाबा के भक्तों ने देखा कि बाबा राम-लक्ष्मण के बीच खड़े थे और हनुमान जी उनकी परिक्रमा कर रहे थे। उनके अवशेषों को कई तीर्थ स्थलों में विसर्जित किया गया और कुछ अवशेषों को उनके आश्रमों में भेजा गया, जहां बाद में उनकी मूर्तियां स्थापित की गईं।