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दिल्ली के कोठे में क्या होता है? भारत के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया का डराने वाला सच

GB Road Sex workers: दिल्ली के जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स की दयनीय स्थिति और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप। जानें कैसे सरकार को दी गई नई जिम्मेदारी से इनकी स्थिति में सुधार की उम्मीद है।

GB Road Sex workers: दिल्ली की जीबी रोड, जो भारत की सबसे बड़ी और पुरानी रेड लाइट एरिया के रूप में जानी जाती है, आज भी अंधेरे में छिपी पीड़ाओं और दर्द की गवाह है। यहां की लगभग 25 इमारतों में फैले 116 कोठों में 4000 से अधिक सेक्स वर्कर्स रहती हैं, जिनकी ज़िंदगी चुनौतियों और संघर्ष से भरी है। ये महिलाएं सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं, और इनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है।

जीबी रोड: स्वास्थ्य और सामाजिक समस्याओं का अड्डा

जीबी रोड की 30 फीसदी महिलाएं त्वचा, शुगर और शारीरिक कमजोरी जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं, जबकि 5 फीसदी महिलाएं HIV+ हैं। इस क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं की दयनीय स्थिति समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक गंभीर सवाल है। सेक्स वर्कर्स की इन स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

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2008 में शुरू हुआ मतदाता अधिकारों की पहल

2008 में, पहली बार जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स को समाज में उनके अधिकार दिलाने की पहल की गई थी। इस साल तकरीबन 1,500 महिलाओं के मतदाता पहचान पत्र बने और उन्होंने पहली बार चुनाव में हिस्सा लिया। यह कदम उनके सामाजिक अधिकारों को पहचान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन इसके बाद भी उनकी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ।

ब्रिटिश काल का विरासत: क्राइम और सेक्स ट्रेड का अड्डा

ब्रिटिश राज से शुरू हुआ यह रेड लाइट एरिया आज भी अपराधियों का अड्डा बना हुआ है। दिन में यहां भारी मशीनों, ऑटो मोबाइल पार्ट्स और हार्डवेयर की दुकानों का कारोबार चलता है, और रात के अंधेरे में ये कोठे सेक्स ट्रेड का केंद्र बन जाते हैं। इस अंधकार में अपराध और हिंसा की घटनाएं आम हैं, जो इस क्षेत्र की समस्याओं को और बढ़ा देती हैं।

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सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: सशक्तिकरण और सुधार की दिशा

जीबी रोड की इन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 21 (जीने का अधिकार) के तहत केंद्र सरकार को सेक्स वर्कर्स के सशक्तिकरण के लिए योजनाएं बनाने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि इन योजनाओं के तहत सेक्स वर्कर्स को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाए और उनके लिए रोजगार की व्यवस्था की जाए। अगर सरकार देह व्यापार को नियंत्रित नहीं कर सकती, तो उसे कानूनी दर्जा देने पर भी विचार करना चाहिए।

निष्कर्ष: बदलाव की दिशा में कदम

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स की स्थिति पर रोशनी डाली है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इन आदेशों को कैसे लागू करती है और इन महिलाओं की ज़िंदगी में कितना बदलाव ला पाती है। जब तक यह सुधार लागू नहीं होते, तब तक जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स का संघर्ष जारी रहेगा।

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