मही पीर की दरगाह और अणमानाथ जी का थान; दिन में होती है कव्वाली तो रात में होता है भजन
चूरू की मही पीर की दरगाह और अणमानाथ जी का थान हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। जानिए कैसे एक ही स्थल पर दोनों धर्मों की पूजा होती है और यह स्थान सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल प्रस्तुत करता है।
चूरू, 13 अगस्त 2024: भारत की सांप्रदायिक विविधता का एक शानदार उदाहरण राजस्थान के चूरू जिले में स्थित मही पीर की दरगाह और अणमानाथ जी का थान है। यह स्थल धार्मिक एकता और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर अपने-अपने तरीके से पूजा-अर्चना और इबादत करते हैं। इस अनोखी परंपरा ने इस स्थान को एक ऐसी जगह बना दिया है, जहां धर्म की सीमाओं को पार कर लोग एक-दूसरे की आस्था का सम्मान करते हैं।
धार्मिक एकता का प्रतीक
मही पीर की दरगाह और अणमानाथ जी का थान एक ही परिसर में स्थित हैं और इनकी देखरेख एक हिंदू परिवार, केशरदेव राठी और उनके परिवार द्वारा की जाती है। यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है और इसे देखकर यह स्पष्ट होता है कि यहां के लोगों में गहरी सांप्रदायिक सद्भावना है। केशरदेव राठी का परिवार न केवल दरगाह की देखरेख करता है, बल्कि मंदिर की पूजा भी करता है।
स्थापना और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
2001 में स्थापित हुए इस स्थल की कहानी भी दिलचस्प है। मही पीर की दरगाह दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया के शिष्य मही पीर बाबा की मजार है। कहा जाता है कि मही पीर बाबा पहले दिल्ली से राजस्थान के झुंझुनू जिले के दुड़ाना गांव में आए थे, जहां उन्होंने मही पीर की मजार स्थापित की थी। अणमानाथ बाबा भी इसी गांव में रहते थे और उनकी आस्था दोनों धर्मों में समान रूप से सम्मानित थी। इसी आस्था के प्रतीक के रूप में चूरू में मही पीर की दरगाह और अणमानाथ जी का थान स्थापित किया गया।
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल
केशरदेव राठी का कहना है कि यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है और उनके परिवार की दोनों स्थलों में गहरी आस्था है। यहां आने वाले लोग न केवल मन्नतें मांगते हैं, बल्कि उन्हें पूरा होते भी देखते हैं। इस प्रकार, यह स्थल हिंदू-मुस्लिम एकता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है और देशभर में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करता है।
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