स्वर्गीय संत बहादुर चंद वकील साहिब की डायरी खोलेगी डेरे के राज; वसीयत के पनों की तस्वीरें भी आई सामने
Dera Jagmalwali News : डेरा जगमालवाली में गद्दी को लेकर बढ़ते तनाव के बीच सामने आई संत बहादुर चंद वकील साहिब की लाल डायरी, जिसमें विरासत की गहरी बातें छिपी हैं।
Dera Jagmalwali News : सिरसा डेरा जगमालवाली के गद्दी को लेकर चल रहे विवाद में अब एक नई कड़ी जुड़ गई है। स्वर्गीय संत बहादुर चंद वकील साहिब की एक लाल डायरी सामने आई है, जिसने डेरा शाह मस्ताना बिलोचिस्तानी जगमालवाली के अंदर कई रहस्यों को उजागर करने की संभावना जताई है। इस डायरी में डेरे की वसीयत और संतों के जीवन से जुड़ी कई अहम बातें दर्ज हैं, जो इस विवाद को और भी गहरा सकती हैं।
लाल डायरी: विरासत की गवाही
डायरी में वकील साहिब ने 1 जनवरी 2023 को अपनी वसीयत दर्ज की थी, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा है कि डेरे की गद्दी महात्मा वीरेंद्र के नाम की जाती है। डायरी में डेरे के पूर्व संत गुरुबख्स सिंह मैनेजर का भी जिक्र है, जिन्होंने पहले वकील साहिब के नाम डेरे की वसीयत की थी। वसीयत के अनुसार, डेरे के ट्रस्ट के सभी सदस्यों का भी नाम उल्लेखित है। वकील साहिब ने अपने होश हवास में यह वसीयत लिखी थी, जिसे प्रिंट और रजिस्टर्ड करवाकर डेरे के ट्रस्ट के सामने पढ़ा भी गया था।
ट्रस्ट के सामने वसीयत की पुष्टि
डायरी में दर्ज वसीयत को संत वकील साहिब के रहते हुए ट्रस्ट के सदस्यों के सामने पढ़ा गया था। ट्रस्ट सदस्य सुमेर सिंह ने भी इस वसीयत को सार्वजनिक रूप से सुनाया था। इस डायरी की मौजूदगी से साफ होता है कि वकील साहिब ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में महात्मा वीरेंद्र को डेरा सौंपने का निर्णय लिया था।
विवाद की जड़: अमर सिंह का दावा
संत वकील साहिब के निधन के बाद डेरा जगमालवाली में गद्दी को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब बिश्नोई समाज के वक्ता अमर सिंह ने वसीयत को फर्जी करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि वसीयत की सत्यता पर सवाल खड़े किए और सीबीआई या हाईकोर्ट के सिटिंग जज से जांच की मांग की। अमर सिंह के इन आरोपों ने डेरे में पहले से चल रहे विवाद को और भड़काने का काम किया है।
संत वकील साहिब का निधन और विवाद
संत वकील साहिब का निधन दिल्ली के एक निजी अस्पताल में हुआ था, और जब उनके पार्थिव शरीर को डेरा जगमालवाली में लाया गया, तभी से गद्दी को लेकर विवाद शुरू हो गया। अमर सिंह ने उस वक्त दावा किया कि वसीयत वीरेंद्र के नाम नहीं, बल्कि फर्जी तरीके से बनाई गई है। इस विवाद ने डेरे के अनुयायियों में भी काफी हलचल मचा दी है।
क्या खुलेंगे और भी राज़?
अब सवाल यह है कि लाल डायरी से और कौन-कौन से राज़ निकलकर सामने आएंगे? डेरे के अनुयायियों और ट्रस्ट के सदस्यों के लिए यह एक बड़ी चुनौती हो सकती है। आने वाले दिनों में इस डायरी से और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं, जो इस विवाद को और गहराई में ले जाएंगे।
डेरा जगमालवाली में चल रहे इस विवाद ने न केवल डेरे के अंदरुनी मामलों को उजागर किया है, बल्कि पूरे इलाके में राजनीतिक और सामाजिक चर्चा का केंद्र भी बना दिया है। अब देखना होगा कि इस विवाद का अंत कैसे होता है और लाल डायरी में दर्ज वसीयत की सत्यता पर कब तक मुहर लगती है।