Wife Market: इस गांव में लगती है सबसे अनोखी मंडी, बीवी खरीदने दूर-दूर से आते हैं लोग; जानिए धड़ीचा कुप्रथा का काला सच
women market in india: मध्यप्रदेश के शिवपुरी में 'धड़ीचा' कुप्रथा के तहत महिलाओं की मंडी लगाई जाती है, जहां उनकी खरीद-फरोख्त की जाती है। इस प्रथा ने महिलाओं के अधिकारों का हनन किया है। जानिए इस कुप्रथा का पूरा सच।
Wife Market In Shivpuri: शिवपुरी (मध्यप्रदेश) – भारत में विविध जनजातियां और उनके साथ जुड़ी अनेक प्रथाएं देखने को मिलती हैं। इनमें से कुछ प्रथाएं समाज को प्रेरित करती हैं, जबकि कुछ कुप्रथाएं समाज के लिए शर्मिंदगी का कारण बनती हैं। एक ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले का है, जहां ‘धड़ीचा’ नामक कुप्रथा के तहत महिलाओं की मंडी लगती है। यह प्रथा न केवल महिलाओं के सम्मान का हनन करती है बल्कि समाज के उस अंधेरे पक्ष को भी उजागर करती है, जहां महिलाओं की खरीद-फरोख्त होती है।
क्या है ‘धड़ीचा’ प्रथा?
‘धड़ीचा’ कुप्रथा के अंतर्गत, शिवपुरी में एक विशेष स्थान पर महिलाओं को किराए पर खरीदा और बेचा जाता है। इस मंडी में दूर-दूर से लोग आते हैं और अपनी पसंद की महिला या लड़की को सौदे के तहत किराए पर अपने साथ ले जाते हैं। इस प्रक्रिया में महिलाओं की कीमत और अवधि तय की जाती है, जो कुछ महीनों से लेकर एक साल तक की हो सकती है। सौदे के बाद एक एग्रीमेंट तैयार किया जाता है, जिसमें दोनों पक्षों की सहमति दर्ज होती है।
कैसे होता है सौदा?
महिलाओं की मंडी में सौदा करने के लिए पुरुषों की भीड़ इकट्ठा होती है। गरीब परिवार अपनी बहू-बेटियों को इस मंडी में लाते हैं, जहां पुरुष अपनी पसंद की महिला चुनते हैं। सौदे की रकम पंद्रह हजार से शुरू होती है और यह लाखों तक जा सकती है। खासकर कुंवारी लड़कियों की कीमत अधिक होती है। पुरुष इन महिलाओं को अपने साथ कुछ समय के लिए ले जाते हैं, जिन्हें वे घरेलू कामकाज, बुजुर्गों की देखभाल या किसी अन्य कारण से किराए पर लेते हैं।
सौदे का समय | महिलाओं की कीमत |
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1 साल | 15,000 – 1 लाख |
कुछ महीने | 10,000 – 50,000 |
खरीदार कौन होते हैं?
इस मंडी में मुख्य रूप से वे लोग आते हैं जो किसी न किसी कारणवश अपनी जरूरतों के लिए महिलाओं का सौदा करते हैं। कई बार वे पुरुष भी इस मंडी में आते हैं जिनकी शादी नहीं हो पा रही होती, वे यहां से कुछ समय के लिए बीवी खरीद कर ले जाते हैं। कुछ लोग अपने घर में बुजुर्गों की देखभाल के लिए महिलाओं को किराए पर लेते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में महिलाओं को यह अधिकार होता है कि वे सौदे से इंकार कर सकती हैं।
एग्रीमेंट की प्रक्रिया
इस कुप्रथा को कानूनी रूप देने के लिए एग्रीमेंट भी किया जाता है। पुरुष और महिला दोनों के बीच स्टाम्प पेपर पर एग्रीमेंट तैयार होता है, जिसमें सौदे की पूरी शर्तें दर्ज होती हैं। स्टाम्प पेपर की कीमत 10 रुपए से शुरू होकर बढ़ती जाती है। एग्रीमेंट की अवधि तय की जाती है, जिसमें महिला कितने समय तक उस पुरुष के साथ रहेगी।
प्रथा या कुप्रथा?
मध्यप्रदेश के इस हिस्से में महिलाओं की इस तरह की मंडी लगाना एक गंभीर सामाजिक समस्या है। जहां एक ओर देश में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है, वहीं दूसरी ओर यह कुप्रथा महिलाओं की गरिमा और सम्मान का उल्लंघन करती है। धड़ीचा प्रथा ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह प्रथा सच में प्रथा है या फिर समाज पर एक काला धब्बा।
महिला अधिकारों का हनन
‘धड़ीचा’ जैसी प्रथाएं भारतीय समाज के उस अंधेरे हिस्से को उजागर करती हैं, जहां महिलाओं के अधिकारों का खुलकर हनन होता है। ऐसे कुप्रथाओं के खिलाफ समाज को जागरूक होना जरूरी है और इसके लिए कड़े कानूनों की भी आवश्यकता है। यह समय है कि सरकार और प्रशासन इस दिशा में कड़े कदम उठाएं ताकि महिलाओं की गरिमा और सम्मान की रक्षा हो सके।